Bond policy: If the government is sensitive then the students should also understand the responsibility

Bond policy: बॉन्ड पॉलिसी : सरकार हो संवेदनशील तो छात्र भी समझें जिम्मेदारी

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Bond policy: If the government is sensitive then the students should also understand the responsibil

Bond policy : हरियाणा में एमबीबीएस छात्रों (MBBS students) और सरकार के बीच बॉन्ड पॉलिसी (Bond policy) को लेकर जारी गतिरोध का जल्द से जल्द हल निकलना आवश्यक (It is necessary to resolve the impasse as soon as possible) है। यह मामला पिछले महीने भर से सुर्खियों में है, रोहतक पीजीआई (Rohtak PGI) समेत दूसरे जिलों में धरने पर बैठे छात्रों की पढ़ाई इससे जहां प्रभावित हो रही है वहीं मामले का समाधान न होने से अस्पतालों में मरीजों की दिक्कत भी बढ़ रही है। अब सरकार और छात्रों के बीच हुई बैठक (Meeting between government and students) भी बेनतीजा रहने से यह सवाल गहराने लगा है कि क्या भविष्य में सरकार कोई ऐसा समाधान निकाल पाने में कामयाब होगी, जोकि सर्वमान्य होगा। हालांकि इस बैठक से यह जरूर तय हो गया है कि मेडिकल छात्र अपनी मांगों से पीछे नहीं हटेंगे (Medical students will not back down from their demands) और सरकार को उनके संबंध में निर्णायक फैसला लेना ही होगा। यह भी कितना सही है कि एमबीबीएस छात्र अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन तक ही सीमित (MBBS students confined to picketing for their demands) हैं, उन्होंने न कानून-व्यवस्था को अपने हाथों में लेने की कोशिश की है और न ही कुछ ऐसा किया है, जिससे उनके प्रति जनता की संवेदनाएं कुंद हों। उनका यह तर्क न्यायोचित है कि इस समय पढ़ाई करने में उनके परिजनों का इतना खर्च हो रहा है, ऐसे में वे 40 लाख रुपये की राशि का बंदोबस्त कैसे करें?

एमबीबीएस छात्रों के लिए बॉन्ड पॉलिसी सिरदर्द (Bond policy headache for MBBS students) है तो यह सरकार के लिए भी परेशानी का सबब बन चुकी है। सरकार ने इसकी अवधि सात साल रखी है वहीं बॉन्ड राशि 40 लाख रुपये तय की हुई है। इसका मतलब यह है कि हरियाणा से एमबीबीएस करने वाले छात्र को सात साल प्रदेश में ही अपनी सेवाएं देनी होंगी और इसके लिए उसे इस राशि का बॉन्ड भरकर देना होगा यानी अगर सेवाएं नहीं तो बॉन्ड राशि जब्त (Bond amount forfeited if services are not provided) कर ली जाएगी। ऐसी रिपोर्ट है कि देश के दूसरे राज्यों में भी बॉन्ड प्रणाली है, लेकिन जितनी राशि हरियाणा में तय की गई है, वह अपने आप में बहुत ज्यादा है। एक तो मेडिकल की पढ़ाई ही इतनी महंगी है, उस पर 40 लाख की बॉन्ड राशि (Bond amount of 40 lakhs) का भार छात्रों और उनके परिजनों पर अनचाही आफत है। अब राज्य सरकार के साथ बैठक के दौरान अधिकारी अगर बॉन्ड पॉलिसी का मकसद समझा रहे हैं तो यह सुना जा सकता है, लेकिन फिर सवाल यह होना चाहिए कि आखिर राज्य सरकार अपने यहां डॉक्टरों की कमी पूरी करने के लिए आखिर ऐसी पॉलिसी को ही क्यों हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है। वहीं जो एमबीबीएस छात्र पॉलिसी (MBBS Student Policy) को सात की बजाय एक साल और बॉन्ड राशि को 40 की बजाय पांच लाख करने की मांग पर अड़े हैं, क्या वे यह भी यकीनी बना सकते हैं कि डॉक्टर की पढ़ाई (Doctor studies) करने के बाद वे राज्य में रहकर ही अपनी सेवाएं देंगे। जबकि राज्य सरकार तो उन्हें प्राथमिकता के आधार पर नौकरी देने को तैयार है।

दरअसल, डॉक्टरों की कमी (Shortage of doctors) को पूरा करने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। प्रदेश में डॉक्टर और प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ की बड़ी दरकार (Great need for medical staff) है। एक राज्य सरकार के लिए अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की देखभाल सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। खट्टर सरकार ने राज्य में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न प्रयास किए हैं, लेकिन डॉक्टरों की कमी से वह सेवाओं का विस्तार नहीं कर पा रही। अकसर यह देखने को मिलता है कि राज्य सरकार के चिकित्सा संस्थानों (State Government Medical Institutions) से डिग्री हासिल करके छात्र देश के अन्य राज्यों में या फिर निजी क्षेत्र में या फिर विदेश रवाना हो जाते हैं। एक सरकार अपने संसाधनों के जरिए छात्रों की पढ़ाई पर जो खर्च करती है, उसके लिए न सरकार को कुछ हासिल होता है और न प्रदेश के नागरिकों को। ऐसे में बॉन्ड पॉलिसी ऐसे बांध की तरह है जोकि छात्रों के राज्य से बाहर होने वाले प्रवाह को रोक सके।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य सरकार के अधिकारी कभी नहीं चाहेंगे कि सरकार का पक्ष कमजोर हो। उन्हें इसी के निर्देश मिले हुए हैं। बैठक में छात्रों के सामने राज्य सरकार के अधिकारी यही समझाते रहे कि बॉन्ड पॉलिसी क्यों जरूरी (Why bond policy is important) है। ऐसे में सवाल यह उत्पन्न होता है कि क्या राज्य सरकार का राजनीतिक नेतृत्व इस मामले को खुद निपटाने के लिए आगे आएगा। आखिरकार राजनीतिक नेतृत्व को जनता के समक्ष जाकर वोट की अपील करनी होती है, उस समय वह जनता की संवेदनाओं को सहलाता है और बदले में समर्थन मांगता है। बेशक, सरकार और प्रदेश के हितों को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए (Interests should not be harmed) लेकिन अब राजनीतिक नेतृत्व ही यह कार्य कर सकता है कि वह एमबीबीएस के छात्रों के साथ विश्वास बहाली करते हुए उन्हें पॉलिसी के संबंध में राजी करे। हालांकि एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्रों के संबंध में यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि उनके पास नोटों की खदानें हैं। तमाम ऐसे भी बच्चे होंगे, जिनके परिजनों ने उधार लेकर या फिर लोन लेकर फीसें भरी होंगी। यह डिग्री उनकी जिंदगी बनाने के लिए है। डॉक्टरों को किसी एक राज्य या देश तक सीमित नहीं माना जा सकता, वे पूरी मानवता के हमदर्द होते हैं। उनके प्रति इतना कठोर रवैया भी उचित नहीं है, वहीं भावी डॉक्टरों को भी अपनी अंतरात्मा को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जब वे यहां रहकर डिग्री हासिल करते हैं तो फिर अपने बड़े आर्थिक फायदे के लिए बाहर क्यों चले जाते हैं। क्यों नहीं राज्य में रहकर ही जनता की सेवा करते हुए अपनी अर्जित शिक्षा को कामयाब बनाते। 

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